For years together I identified with my mind (with thoughts, memories and feelings), until one day when I read the article by Osho reproduced below.
After reading the article, an awakening has taken place that I am different, I am not the mind.
This awakening has become deeper and deeper that Mind is a part of me and I am something more.
ऐसा नही है की
सिर्फ आपके पास कचरा है।
दूसरे के पास नही
आप जितना बाहर
फेंकते रहें ये कभी
खत्म नही होने वाला।
सिर्फ आपके पास कचरा है।
दूसरे के पास नही
आप जितना बाहर
फेंकते रहें ये कभी
खत्म नही होने वाला।
ये खुद ही खुद
बढ़ने वाली चीज है।
अगर हम इसे काटें तो फिर
नई पत्तियां जन्म लेती है।
बढ़ने वाली चीज है।
अगर हम इसे काटें तो फिर
नई पत्तियां जन्म लेती है।
मन में कचरा तो रहेगा ही।
वास्तव में हमारा तादात्म्य है
उस कचरे से।
उस कचरे से।
दिन भर न जाने
कितना कचरा आँखों से
कानो से भरता ही
चला जाता है भीतर।
उसे भरने दीजिये।
आप उसके प्रति
होशपूर्ण बने रहे।
उसके साथ आप अपना
तादात्म्य न जोड़े
बस देखते रहे की
कैसे ये सब हो रहा है।
कितना कचरा आँखों से
कानो से भरता ही
चला जाता है भीतर।
उसे भरने दीजिये।
आप उसके प्रति
होशपूर्ण बने रहे।
उसके साथ आप अपना
तादात्म्य न जोड़े
बस देखते रहे की
कैसे ये सब हो रहा है।
तब आप को स्वयं ही
इस कचरे से छुटकारा
मिल जाएगा ।
आप अलग होंगे
कचरा अलग होगा।
इस कचरे से छुटकारा
मिल जाएगा ।
आप अलग होंगे
कचरा अलग होगा।
ओशो.....♡
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